कविता से दोस्ती
============
जब से हुई कविता
से मेरी दोस्ती
हर पल बीतता
हँसता मुस्कुराता ..............
दूर हुई मेरे
जीवन से उदासी
अब मेरी जिन्दगी
नई सुबह सी ......................
खो गये गम के
बदल पल भर में
खुशियों से भर
गई मेरी जिन्दगी
बस एक पल में
अब मुझे लगता है
जीवन का पल प्यारा
जी लो हर पल को
जी भर के ये पल
न आएंगे दुबारा .............
हर डगर में आती है रोशनी नजर
अब कही नही है अँधेरा
हो गया है मेरे
जीवन का नया सवेरा
गरिमा
Sunday 21 April, 2013
संवाद
====
संवाद से खुलते है
सुलह के द्वार
बढ़ता है आपस
में प्यार .....................
धुल जाता है
दिल का मैल
खुल जाती है
रिश्तो की गांठे
मिल जाते है दिल ...........
कोई भी हालत हो
अपनों के पास हो
न नाराज हो ..............
किसी भी रिश्ते को
गर निभाना
चाहे आप
झुक जाये आप ..............
झुकने से न होता
कोई छोटा बड़ा
रिश्ता होता
सदा साथ खडा ...........................
टूटते है रिश्ते
तो बिखरते है इन्सान
सहेजे रिश्ते
करते रहे संवाद ..............................
गरिमा
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संवाद से खुलते है
सुलह के द्वार
बढ़ता है आपस
में प्यार .....................
धुल जाता है
दिल का मैल
खुल जाती है
रिश्तो की गांठे
मिल जाते है दिल ...........
कोई भी हालत हो
अपनों के पास हो
न नाराज हो ..............
किसी भी रिश्ते को
गर निभाना
चाहे आप
झुक जाये आप ..............
झुकने से न होता
कोई छोटा बड़ा
रिश्ता होता
सदा साथ खडा ...........................
टूटते है रिश्ते
तो बिखरते है इन्सान
सहेजे रिश्ते
करते रहे संवाद ..............................
गरिमा
न वन नादान
===========
क्यों खोया है
मानव तू
भूत भविष्य
के मंथन में.............
भूत बसा यादों में
भविष्य बाह पसारे
सामने है वर्तमान
मुस्कुराती चितवन में ................
क्यों भूत को रखा थाम
भविष्य की चिंता क्यों
भटके मन जीव क्यों सघन में .............
अपने मंथन से
मुक्त हो
हे विकल मन तू
विचर जरा मुक्त गगनं में.............
वर्तमान है
कितना सुन्दर
हर पल में है आनंद
मन भ्रमरों के गुंजन में ................
इस आनद को
मत खो तू मानव
ये जीवन है वरदान
ढूंढ खुशियाँ इसके आँगन में...............
एक एक पल का
उठा ले तू आनंद
जीवन का सबसे
सुंदर पल है वर्तमान
जी ले नादान इसके हर पल में .........गरिमा
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क्यों खोया है
मानव तू
भूत भविष्य
के मंथन में.............
भूत बसा यादों में
भविष्य बाह पसारे
सामने है वर्तमान
मुस्कुराती चितवन में ................
क्यों भूत को रखा थाम
भविष्य की चिंता क्यों
भटके मन जीव क्यों सघन में .............
अपने मंथन से
मुक्त हो
हे विकल मन तू
विचर जरा मुक्त गगनं में.............
वर्तमान है
कितना सुन्दर
हर पल में है आनंद
मन भ्रमरों के गुंजन में ................
इस आनद को
मत खो तू मानव
ये जीवन है वरदान
ढूंढ खुशियाँ इसके आँगन में...............
एक एक पल का
उठा ले तू आनंद
जीवन का सबसे
सुंदर पल है वर्तमान
जी ले नादान इसके हर पल में .........गरिमा
Wednesday 10 April, 2013
एक सवाल कि
आखिर क्यों तोड़ते है हम
अपने बूढ़े माँ बाप की उम्मीद,
क्या इसी दिन के लिए
वे हमे उंगली पकड़ के
चलना सिखाते है?
खुद भूखे रहकर
हमे खिलाते है,
वीमार है हम
जागते है वो रातो को....
इम्तिहान हमारे
जागते है वे
अपने सपने तोड़कर,
हमारे सपने सच करते है
इसी उम्मीद में कि
जब वे बूढ़े हो जायेगे
तो उनके बच्चे
उन्हें सहारा देंगे....
अपनी उंगली
पकड़कर चलायेगे,
वीमार होगे
तो इलाज कराएगे.....
उनका ख्याल रखेगे
लेकिन क्यों तोड़ देते है
उनकी ये उम्मीद?
क्यों.........आखिर क्यों???
- गरीमा
आखिर क्यों तोड़ते है हम
अपने बूढ़े माँ बाप की उम्मीद,
क्या इसी दिन के लिए
वे हमे उंगली पकड़ के
चलना सिखाते है?
खुद भूखे रहकर
हमे खिलाते है,
वीमार है हम
जागते है वो रातो को....
इम्तिहान हमारे
जागते है वे
अपने सपने तोड़कर,
हमारे सपने सच करते है
इसी उम्मीद में कि
जब वे बूढ़े हो जायेगे
तो उनके बच्चे
उन्हें सहारा देंगे....
अपनी उंगली
पकड़कर चलायेगे,
वीमार होगे
तो इलाज कराएगे.....
उनका ख्याल रखेगे
लेकिन क्यों तोड़ देते है
उनकी ये उम्मीद?
क्यों.........आखिर क्यों???
- गरीमा
Saturday 6 April, 2013
लक्ष्य
::::::::::::::::::::
लक्ष्य तक पहुँचे बिना
राह में आराम कैसा?
जो अधूरा रह जाये
वो काम कैसा ?....
लक्ष्य है अति दूर
दुर्गम है राह
जो राह हो आसन
वो मुकाम कैसा ?....
कांटे ही कांटे
है राह मे
जो न चुभे
तो जीत का मजा कैसा ?....
राह के काँटों
को पुष्प हम
बनाते चले,
अपने सपनों का
महल हम सजाते चले....
चलना ही जीवन है
तो रह में रुकना कैसा,
रुक जाये जो राह में
वो मुसाफिर कैसा ?.....
रायफल से निकली गोली
ठहरती कब है,
अपने निशाने से
चूकती कब है ?......
देखते ही देखते
करती है लक्ष्य भेद,
लक्ष्य मिले तो
हो जाता उस जगह छेद......
प्रेरित गोली है लक्ष्य
तो राह में रुकना कैसा,
लक्ष्य भेद किये बिना
राह में रुकना कैसा ?......
वही है राहगीर
जो चले निरंतर राह में,
निरंतरता में जीत छुपी
चल बढ़ा कदम राह में......
हार बैठे जो राह में
राहगीर कैसे उसका नाम,
चलना और पहुंचना
अपने लक्ष्य पर उसका काम......
सूरज की किरणे
जब पहुंचे धरा पर
दूर करेअँधियारा,
अपनी रोशनी से
चंहुं ओर करे उजयारा.....
इस उजयारे में
दिख रहा है लक्ष्य
अति निकट,
कर प्रयास और
पहुंच लक्ष्य के निकट.....
बस बढ़ते चलो - बढते चलो
जल्द ही सच होगा सपना,
सपना, जो है तुम्हारे हृदय मे
है तुम्हारा अपना......
- गरिमा
::::::::::::::::::::
लक्ष्य तक पहुँचे बिना
राह में आराम कैसा?
जो अधूरा रह जाये
वो काम कैसा ?....
लक्ष्य है अति दूर
दुर्गम है राह
जो राह हो आसन
वो मुकाम कैसा ?....
कांटे ही कांटे
है राह मे
जो न चुभे
तो जीत का मजा कैसा ?....
राह के काँटों
को पुष्प हम
बनाते चले,
अपने सपनों का
महल हम सजाते चले....
चलना ही जीवन है
तो रह में रुकना कैसा,
रुक जाये जो राह में
वो मुसाफिर कैसा ?.....
रायफल से निकली गोली
ठहरती कब है,
अपने निशाने से
चूकती कब है ?......
देखते ही देखते
करती है लक्ष्य भेद,
लक्ष्य मिले तो
हो जाता उस जगह छेद......
प्रेरित गोली है लक्ष्य
तो राह में रुकना कैसा,
लक्ष्य भेद किये बिना
राह में रुकना कैसा ?......
वही है राहगीर
जो चले निरंतर राह में,
निरंतरता में जीत छुपी
चल बढ़ा कदम राह में......
हार बैठे जो राह में
राहगीर कैसे उसका नाम,
चलना और पहुंचना
अपने लक्ष्य पर उसका काम......
सूरज की किरणे
जब पहुंचे धरा पर
दूर करेअँधियारा,
अपनी रोशनी से
चंहुं ओर करे उजयारा.....
इस उजयारे में
दिख रहा है लक्ष्य
अति निकट,
कर प्रयास और
पहुंच लक्ष्य के निकट.....
बस बढ़ते चलो - बढते चलो
जल्द ही सच होगा सपना,
सपना, जो है तुम्हारे हृदय मे
है तुम्हारा अपना......
- गरिमा
Tuesday 2 April, 2013
बचपन
बचपन के दिन थे
कितने सुहाने
बीत गये वो
पल सुहाने
फिर न आयेगे
वो पल प्यारे
अपनी ही मस्ती
में जीना
कुछ भी खाना
कही भी सोना
हर पल को
जी भर के जीना
पल में रूठना
पल में मान जाना
ना चिंता ना परेशानी
बस शैतानी
थोड़ी नादानी
हर पल को
जीना जिंदगानी
बारिश में
कागज की
नाव चलाना
भजिया और
जलेबी खाना
हर पल को
जीना जी भर के
बीत गये जो
पल सुहाने
फिर न आयेगे
वो पल प्यारे
गरिमा
बचपन के दिन थे
कितने सुहाने
बीत गये वो
पल सुहाने
फिर न आयेगे
वो पल प्यारे
अपनी ही मस्ती
में जीना
कुछ भी खाना
कही भी सोना
हर पल को
जी भर के जीना
पल में रूठना
पल में मान जाना
ना चिंता ना परेशानी
बस शैतानी
थोड़ी नादानी
हर पल को
जीना जिंदगानी
बारिश में
कागज की
नाव चलाना
भजिया और
जलेबी खाना
हर पल को
जीना जी भर के
बीत गये जो
पल सुहाने
फिर न आयेगे
वो पल प्यारे
गरिमा
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