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जब से
दुनियां में
जन्म लिया
यही सुनते सुनते
बड़ी हुई हूँ
की हम
पुरुष प्रधान
समाज में रहते है
कितनी भी की जाये
बराबरी बातें
लेकिन लड़कियों
को कुछ करने की
कहने की आजादी नही
वो हो कितनी भी
काबिल
रहती है
एक लछमण रेखा के अंदर
जैसे ही पड़ते है कदम
इस रेखा से बाहर
लहूलुहान हुए हम
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गरिमा
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